साध्वीश्री अशोकश्रीजी आदि ठाना ४ के पावन सानिध्य में दिनांक ०८.०२.११ से १०.०२.११ तक मर्यादा महोत्सव के उपलक्ष में विविध कार्यक्रमों का आयोजन हुआ. मुख्य कार्यक्रम दिनांक १०.०२.११ को आयोजित हुआ जिसमे जयसिंगपुर के साथ साथ इचलकरंजी, हुबली, सांगली, कोल्हापुर, मिराज, माधवनगर, तास्गाँव आदि स्थानों से भी श्रावक समाज बड़ी संख्या में उपस्थित था.
प्रथम दिवस - सेवा का महत्व
जयसिंगपुर महिला मंडल द्वारा सुमधुर गीतिका के साथ कार्यक्रम का मंगलाचरण किया गया. अपने पावन पाथेय में साध्वी श्री अशोकश्रीजी ने फरमाया कि हर धर्म में सेवा का महत्व बाताया गया है एवं ज्ञानी, ध्यानी, स्वाध्यायी से भी अधिक मूल्य सेवाभावी व्यक्ति का होता है. निष्काम भाव से सेवा करने वाले के अशुभ कर्मो का नाश और पुण्य का बांध होता है. सेवाभावी साधू कर्मों की निर्जरा करता हुआ तीर्थंकर पद तक पहुच सकता है. बाल-वृद्ध, ग्लान-रोगी की सेवा करने से आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती है. उन्होंने आगे फरमाया कि तेरापंथ धर्मसंघ में सेवा का बहुत महत्व है और इसीलिए इसका हर सदस्य, साधू साध्वी अपने भविष्य की चिंता से पूर्ण निश्चिन्त है.
इस अवसर पर साह्ध्वी श्री मंजुयाशाजी ने भी अपने विचार रखे एवं अंत में साध्वी वृन्द द्वारा एक सुमधुर गीतिका का भी संघान किया गया.
द्वितीय दिवस - आचार्य श्री महाप्रज्ञ जीवन दर्शन
साध्वीश्री अशोश्रीजी ने तेरापंथ के दशम अधिशाश्ता पूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के प्रति अपनी श्रद्धा भावना व्यक्त करते हुए कहा कि - "तेरापंथ धर्मसंघ एक प्राणवान धर्मसंघ है एवं इसके एक एक आचार्य ने इसे अपनी त्यागा, तपस्या एवं साधना की श्रम की बूंदों से सींचा है. आचार्य महाप्रज्ञजी का जीवन उज्जवल जीवन था. उनकी अंतर प्रज्ञा जागृत थी एवं गुरु के प्रति उनका विनय एवं समर्पण अद्भुत ठा. उनका कर्तृत्व कुशल एवं नेतृत्व सक्षम था. आगम सम्पादन, प्रेक्षाध्यान एवं जीवन विज्ञान जैसे अवदान देकर आपने समाज को कृतार्थ कर दिया. आपके कर्तृत्व को केवल तेरापंथ या जैन समाज ही नहीं अपितु समस्त विश्व युगों युगों तक याद रखेगा." साध्वी श्री जी ने उनके जीवन के कई मधुर संस्मरण सुनाकर परिषद् को भाव विभोर कर दिया.
इस अवसर पर साध्वी श्री चिन्मयप्रभाजी, साध्वी श्री चारुप्रभाजी, श्री विजयसिंह रुनवाल, महिला मंडल आदि ने भाषण, गीत, कविता आदि के द्वारा अपनी श्रद्धा भावना प्रस्तुत की.
तृतीय दिवस - मर्यादा महोत्सव मुख्य कार्यक्रम
दिनांक १०.०२.११ को जयसिंगपुर तेरापंथ हवं में मर्यादा महोत्सव का मुख्य समारोह श्री विनोद मगदूम एवं डा. श्री अजीत रजपूत की प्रमुख उपस्थिति में आयोजित किया गया. महिला मंडल द्वारा सुमधुर गीतिका के साथ कार्यक्रम का मंगलाचरण किया गया. अपने पावन पाथेय में साध्वीश्री अशोकश्रीजी ने फरमाया कि - " उत्सवो के देश भारत में तेरापंथ धर्मसंघ द्वारा मर्यादाओ का अनूठा उत्सव मनाया जाता है जिसका उदहारण अन्यत्र कही नहीं मिलता. आज तेरापंथ धर्मसंघ की पहचान उसका अनुशाशन एवं मर्यादा पालन है, जिसका श्रेय तेरापंथ के आधी प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु को जाता है, जिन्होंने अपनी दुर्दृष्टिता से साधना की सुरक्षा एवं संघ की दीर्घजीविता के लिए मर्यादाओ का निर्माण किया. तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्री जयाचार्य ने संवत १८६९ में अंतिम मर्यादा पत्र लिखा जो आज तक संघ का सुरक्षा छत्र बना हुआ है. " उन्होंने आगे फरमाया कि - " तेरापंथ धर्मसंघ आज नाना प्रकार की आध्यात्मिक प्रवृतियों के विकास का केंद्र बना हुआ है. संघ अनवरत प्रगति के नए द्वार खोलता जा रहा है एवं ऐसे में मौलिक मर्यादाओं का होना नितांत आवश्यक है. संघ में अंहकार एवं ममकार को कोई स्थान नहीं है. अत: मर्यादा ही हमारा प्राण एवं त्राण है."
इस अवसर पर जयसिंगपुर सभा ट्रस्ट द्वारा उपस्थि मान्यवरो का स्वागत किया गया. साध्वी श्री चिन्मय्प्रज्ञा. शाध्वी श्री चारुप्रभा, मुख्य वक्ता श्री अजीत रजपूत, श्री विनोद मगदूम, श्री विजय रुनवाल, इचलकरंजी महिला मंडल, श्रीमती देवी भंसाली-इचलकरंजी, श्री सोहनलालजी कोठारी-हुबली, श्रीमती जयश्री जोगड़-इचलकरंजी आदि ने भी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी. कार्यक्रम का संचालन साध्वी श्री मंजुयाशाजी ने किया.
प्रथम दिवस - सेवा का महत्व
जयसिंगपुर महिला मंडल द्वारा सुमधुर गीतिका के साथ कार्यक्रम का मंगलाचरण किया गया. अपने पावन पाथेय में साध्वी श्री अशोकश्रीजी ने फरमाया कि हर धर्म में सेवा का महत्व बाताया गया है एवं ज्ञानी, ध्यानी, स्वाध्यायी से भी अधिक मूल्य सेवाभावी व्यक्ति का होता है. निष्काम भाव से सेवा करने वाले के अशुभ कर्मो का नाश और पुण्य का बांध होता है. सेवाभावी साधू कर्मों की निर्जरा करता हुआ तीर्थंकर पद तक पहुच सकता है. बाल-वृद्ध, ग्लान-रोगी की सेवा करने से आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती है. उन्होंने आगे फरमाया कि तेरापंथ धर्मसंघ में सेवा का बहुत महत्व है और इसीलिए इसका हर सदस्य, साधू साध्वी अपने भविष्य की चिंता से पूर्ण निश्चिन्त है.
इस अवसर पर साह्ध्वी श्री मंजुयाशाजी ने भी अपने विचार रखे एवं अंत में साध्वी वृन्द द्वारा एक सुमधुर गीतिका का भी संघान किया गया.
द्वितीय दिवस - आचार्य श्री महाप्रज्ञ जीवन दर्शन
साध्वीश्री अशोश्रीजी ने तेरापंथ के दशम अधिशाश्ता पूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के प्रति अपनी श्रद्धा भावना व्यक्त करते हुए कहा कि - "तेरापंथ धर्मसंघ एक प्राणवान धर्मसंघ है एवं इसके एक एक आचार्य ने इसे अपनी त्यागा, तपस्या एवं साधना की श्रम की बूंदों से सींचा है. आचार्य महाप्रज्ञजी का जीवन उज्जवल जीवन था. उनकी अंतर प्रज्ञा जागृत थी एवं गुरु के प्रति उनका विनय एवं समर्पण अद्भुत ठा. उनका कर्तृत्व कुशल एवं नेतृत्व सक्षम था. आगम सम्पादन, प्रेक्षाध्यान एवं जीवन विज्ञान जैसे अवदान देकर आपने समाज को कृतार्थ कर दिया. आपके कर्तृत्व को केवल तेरापंथ या जैन समाज ही नहीं अपितु समस्त विश्व युगों युगों तक याद रखेगा." साध्वी श्री जी ने उनके जीवन के कई मधुर संस्मरण सुनाकर परिषद् को भाव विभोर कर दिया.
इस अवसर पर साध्वी श्री चिन्मयप्रभाजी, साध्वी श्री चारुप्रभाजी, श्री विजयसिंह रुनवाल, महिला मंडल आदि ने भाषण, गीत, कविता आदि के द्वारा अपनी श्रद्धा भावना प्रस्तुत की.
तृतीय दिवस - मर्यादा महोत्सव मुख्य कार्यक्रम
दिनांक १०.०२.११ को जयसिंगपुर तेरापंथ हवं में मर्यादा महोत्सव का मुख्य समारोह श्री विनोद मगदूम एवं डा. श्री अजीत रजपूत की प्रमुख उपस्थिति में आयोजित किया गया. महिला मंडल द्वारा सुमधुर गीतिका के साथ कार्यक्रम का मंगलाचरण किया गया. अपने पावन पाथेय में साध्वीश्री अशोकश्रीजी ने फरमाया कि - " उत्सवो के देश भारत में तेरापंथ धर्मसंघ द्वारा मर्यादाओ का अनूठा उत्सव मनाया जाता है जिसका उदहारण अन्यत्र कही नहीं मिलता. आज तेरापंथ धर्मसंघ की पहचान उसका अनुशाशन एवं मर्यादा पालन है, जिसका श्रेय तेरापंथ के आधी प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु को जाता है, जिन्होंने अपनी दुर्दृष्टिता से साधना की सुरक्षा एवं संघ की दीर्घजीविता के लिए मर्यादाओ का निर्माण किया. तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्री जयाचार्य ने संवत १८६९ में अंतिम मर्यादा पत्र लिखा जो आज तक संघ का सुरक्षा छत्र बना हुआ है. " उन्होंने आगे फरमाया कि - " तेरापंथ धर्मसंघ आज नाना प्रकार की आध्यात्मिक प्रवृतियों के विकास का केंद्र बना हुआ है. संघ अनवरत प्रगति के नए द्वार खोलता जा रहा है एवं ऐसे में मौलिक मर्यादाओं का होना नितांत आवश्यक है. संघ में अंहकार एवं ममकार को कोई स्थान नहीं है. अत: मर्यादा ही हमारा प्राण एवं त्राण है."
इस अवसर पर जयसिंगपुर सभा ट्रस्ट द्वारा उपस्थि मान्यवरो का स्वागत किया गया. साध्वी श्री चिन्मय्प्रज्ञा. शाध्वी श्री चारुप्रभा, मुख्य वक्ता श्री अजीत रजपूत, श्री विनोद मगदूम, श्री विजय रुनवाल, इचलकरंजी महिला मंडल, श्रीमती देवी भंसाली-इचलकरंजी, श्री सोहनलालजी कोठारी-हुबली, श्रीमती जयश्री जोगड़-इचलकरंजी आदि ने भी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी. कार्यक्रम का संचालन साध्वी श्री मंजुयाशाजी ने किया.
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