साध्वी श्री कुन्थु श्री जी ने फरमाया कि हर व्यक्ति की अपनी अपनी आदते होते है. उन्हें बदलने के अनेक प्रयोग है. रंगों के द्वारा भी भावधारा को बदला जा सकता है. होली का पर्व रंगों का पर्व है.
साध्वी श्री ने आगे फ़रमाया कि – “जैसा भाव होता है वैसा ही ग्रंथियो का स्राव होता है, एवं जैसा ग्रंथियो का स्राव वैसा ही व्यक्ति का स्वभाव बनता है. इस प्रकार हम लेश्या ध्यान एवं नमस्कार महामंत्र के साथ रंगों चैतन्य केन्द्रों पर निर्दिष्ट रंगों के ध्यान का प्रयोग कर आदतों का परिष्कार कर सकते है.” साध्वी श्री कुंथुश्री जी ने यह उद्गार तेरापंथ सभा इचलकरंजी द्वारा होली चातुर्मास पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में रखे.
तेरापंथ सभा मुंबई के पूर्व अध्यक्ष श्री भंवरलालजी कर्नावट की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में मुंबई के श्री हसमुख भाई मेहता विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे. उत्तर कर्णाटक तेरापंथ समिति के नव-निर्वाचित अध्यक्ष श्री केवलचंदजी बाफना एवं सचिव श्री महेंद्र चोपड़ा, बेल्लारी सभा के सचिव श्री पारसमलजी खींवसरा, हुबली से श्री पारसमलजी बाफना, इचलकरंजी सभा अध्यक्ष श्री जवाहर भंसाली, तेयुप इचलकरंजी के अध्यक्ष श्री महेंद्र छाजेड, उपाध्यक्ष श्री संजय वैद मेहता, महिला मंडल अध्यक्ष सौ. भाग्य्वंतीदेवी भंसाली आदि ने अपने विचार प्रस्तुत किये.
साध्वी श्री कंचनरेखाजी ने अपने विचार रखे एवं साध्वी सुमंगलाजी एवं साध्वी श्री सुलभयशाजी ने गीतिका प्रस्तुत की. उत्तर कर्णाटक तेरापंथ समिति की ओर से साध्वी श्री को अधिक से अधिक समय का प्रवास उत्तरी कर्णाटक में करने की अर्ज की गयी. कार्यक्रम में इचलकरंजी, जयसिंगपुर, कोल्हापुर, बंगलौर, बेल्लारी, हुबली, गदग, चित्रदुर्गा आदि स्थानों से बड़ी संख्या में श्रावक श्राविका उपस्थित थे. कार्यक्रम का सूत्र सञ्चालन इचलकरंजी सभा के सचिव श्री पुष्पराज संकलेचा ने किया.
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