आचार्य श्री महाप्रज्ञ को समर्पित
जिन शासन के सूर्य महान
(तर्ज – म्हारो प्यारो राजस्थान...)
- साध्वी श्री डॉ. पीयूषप्रभा
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जिन शासन के सूर्य महान I
ज्योति चरण में नमन करे, श्रद्धा से सकल जहान II
यह बालक योगी होगा, योगी का वच सच ही निकला I
माँ बालू के सह नत्थू ने, दीक्षा ली खुद को बदला I
लेश्या ध्यान, श्वास प्रेक्ष से किया आत्म-संधान II
कालू तुलसी के साये में, जीवन का हर पल उजला I
उप्त बीज सिंचन पाकर, वट वृक्ष रूप में था उभरा I
सबका हित चिंतन करना है दिया इसी पर ध्यान II
पुण्य पुरुष आगमधर, श्रुतधर महाप्रज्ञ प्रज्ञा आकर I
जिन-वाणी के व्याख्यायक, भिक्षु के भाष्यकार बनकर I
तेरापंथ को शिखर चढ़ाया, सफल हुआ अभियान II
तुलसी महाप्रज्ञ युग में, परिवर्तन की आई लहरे I
तुलसी के सपनों में, महाप्रज्ञ ने अभिनव रंग भरे I
सात समंदर पार, पहुंचा तुलसी वर विज्ञान II
जीओ भीतर - रहो भले बाहर, यह सूत्र दिया अभिराम I
क्षण-क्षण ज्ञान चेतना जागृत, खुले संघ में नव आयाम I
कैसे भूले उपकारों को ? दिए विशद अवदान II
आचार्य श्री महाप्रज्ञ को समर्पित
जिन शासन के सूर्य महान
(लय – थोडा सा प्यार हुआ है... )
- साध्वी श्री दीप्तियशा
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करता है शत-शत वंदन, संघ महाप्रज्ञ को सारा I
देखें ये प्यासी नजरे – २, दिखाओ वो दिव्य नजारा II
जन्मे थे मुक्त गगन में, पाई कालू से दीक्षा I
समर्पण – गुरुभक्ति से, करनी थी आत्म-समीक्षा I
बनकर तुलसी का पट्टधर, चमका बालू का दुलारा II
अहिंसा यात्रा प्रणेता, जग के नूतन नचिकेता I
तुम्ही थे विश्व-विजेता, प्रखर गण के अधिनेता I
बांटा जग को खजाना, बने अनुपम सहारा II
कैसे तुमने सोचा था ? करना अब आत्म-उत्थान I
पल में छोड़ चले तुम, करके जग से यु प्रस्थान I
प्रभो ! इस पुण्यतिथि पर, करे दीदार तुम्हारा II
तेरा व्यक्तित्व सुखंकर, तेरा नेतृत्व प्रियंकर I
तेरा कर्तृत्व शुभंकर, तेरा अस्तित्व शिवंकर I
देखे अब महाश्रमण में , भव्य वो रूप तुम्हारा II
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