बालोतरा.२७.०४.१२. प्रस्तुति-संजय मेहता.(JTN)
उत्तराध्ययन एवं श्रीमद भगवद गीता के तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित आचार्य महाश्रमण जी की प्रवचन-माला की संकलित पुस्तक "संपन्न बनो" का लोकार्पण किया गया. गुरुदेव महाश्रमण जी ने फरमाया कि आचाय श्री महाप्रज्ञ जी ने २००२ में इसके लिए इंगित किया था. 'सुखी बनो' इस श्रुंखला का पहला ग्रन्थ था एवं यह 'संपन्न बनो' दूसरा ग्रन्थ है. साध्वी सुमतिप्रभा का इस ग्रन्थ के संपादन के लिए उन्होंने साधुवाद किया. गुरुदेव ने अपने प्रवचन में श्रावको को पाथेय फरमाते हुए कहा -साधक को सवाध्याय में रत रहना चाहिए. जैन तत्व में तप के बारह प्रकारों में स्वाध्याय एक है. स्वाध्याय के सामान दुसरा कोई तप् नहीं है, वही सर्वोत्कृष्ट तप बताया गया. स्वाध्याय से साधना का पथदर्शन होता है. आगम में ज्ञान को प्रकाशकर कहा गया है.
स्वाध्याय की परिभाषा बताते हुए आचार्य श्री ने कहा - 'स्व+अध्याय' की संधि से स्वाध्याय शब्द बना है अर्थात स्वयं का - अपनी आत्मा का अध्याय करना स्वाध्याय है. 'सु+आ+अध्याय' अर्थात सब तरह से अध्याय करना स्वाध्याय है. महनीय ग्रंथो को पढ़ने से जीवन में एवं विचारों में गहराई आएगी, इसलिए हमें इन ग्रंथो को पढ़ना चाहिए. तेरापंथ धर्मसंघ में अनेक आगमो का संपादन का महत्वपूर्ण काम हुआ है एवं आज भी वह काम शुरू है. साधु समाज के साथ श्रावक समाज इन सब ग्रंथो का स्वाध्याय कर लाभ ले.
गुरुदेव आचार्य तुलसी की आत्मकथा " 'मेरा जीवन : मेरा दर्शन" के कुल २३ भाग के अंतिम ३ भाग साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभाजी ने गुरुदेव आचार्य महाश्रमण जी को भेंट किये. आचार्य श्री ने फरमाया कि - गुरुदेव तुलसी ने करीब ४७ दिनों तक प्रतिदिन डायरी लेखन किया एवं उसी से यह महत्वपूर्ण साहित्य बना गया है. यह ना केवल तेरापंथ धर्मसंघ बल्कि अन्यों के लिए भी पठनीय है.
उत्तराध्ययन एवं श्रीमद भगवद गीता के तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित आचार्य महाश्रमण जी की प्रवचन-माला की संकलित पुस्तक "संपन्न बनो" का लोकार्पण किया गया. गुरुदेव महाश्रमण जी ने फरमाया कि आचाय श्री महाप्रज्ञ जी ने २००२ में इसके लिए इंगित किया था. 'सुखी बनो' इस श्रुंखला का पहला ग्रन्थ था एवं यह 'संपन्न बनो' दूसरा ग्रन्थ है. साध्वी सुमतिप्रभा का इस ग्रन्थ के संपादन के लिए उन्होंने साधुवाद किया. गुरुदेव ने अपने प्रवचन में श्रावको को पाथेय फरमाते हुए कहा -साधक को सवाध्याय में रत रहना चाहिए. जैन तत्व में तप के बारह प्रकारों में स्वाध्याय एक है. स्वाध्याय के सामान दुसरा कोई तप् नहीं है, वही सर्वोत्कृष्ट तप बताया गया. स्वाध्याय से साधना का पथदर्शन होता है. आगम में ज्ञान को प्रकाशकर कहा गया है.
स्वाध्याय की परिभाषा बताते हुए आचार्य श्री ने कहा - 'स्व+अध्याय' की संधि से स्वाध्याय शब्द बना है अर्थात स्वयं का - अपनी आत्मा का अध्याय करना स्वाध्याय है. 'सु+आ+अध्याय' अर्थात सब तरह से अध्याय करना स्वाध्याय है. महनीय ग्रंथो को पढ़ने से जीवन में एवं विचारों में गहराई आएगी, इसलिए हमें इन ग्रंथो को पढ़ना चाहिए. तेरापंथ धर्मसंघ में अनेक आगमो का संपादन का महत्वपूर्ण काम हुआ है एवं आज भी वह काम शुरू है. साधु समाज के साथ श्रावक समाज इन सब ग्रंथो का स्वाध्याय कर लाभ ले.
गुरुदेव आचार्य तुलसी की आत्मकथा " 'मेरा जीवन : मेरा दर्शन" के कुल २३ भाग के अंतिम ३ भाग साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभाजी ने गुरुदेव आचार्य महाश्रमण जी को भेंट किये. आचार्य श्री ने फरमाया कि - गुरुदेव तुलसी ने करीब ४७ दिनों तक प्रतिदिन डायरी लेखन किया एवं उसी से यह महत्वपूर्ण साहित्य बना गया है. यह ना केवल तेरापंथ धर्मसंघ बल्कि अन्यों के लिए भी पठनीय है.
Acharya Mahashraman Pravchan Videos 27.04.12 Balotra
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