धर्म ही सच्चा त्राण : आचार्य महाश्रमण
बालोतरा. ०३.०५.१२.
आचार्य महाश्रमण ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए फरमाया कि आदमी परिवार-समाज में रहता है, अकेला व्यक्ति अकेला होता है. संघ भी एक परिवार है. प्रश्न यह उठता है की मेरा त्राण एवं शरण कौन है ? परिवार को त्राण माना जाए या नहीं ? आचार्य ने समझाया कि- परिवार त्राण हो सकता है, लेकिन अत्राण भी हो सकता है. स्व-जन भी प्रीत की बात भले कर ले लेकिन वह आपको बचाने में सदैव समर्थ हो यह निश्चित नहीं कहा जा सकता. इसलिए व्यक्ति को जिन-धर्म की शरण में जाना चाहिए जो कि मोक्ष की प्राप्ति कराने वाली है. क्यूंकि चाहे चक्रवर्ती हो या तीर्थंकर, एक बार तो मौत होगी. मोक्ष के बिना अजरता-अमरता नहीं प्राप्त होती.एवं धर्म हमें मोक्ष दिलाता है. इस मायने में धर्म ही सच्चा त्राण है.
बालोतरा. ०३.०५.१२.
आचार्य महाश्रमण ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए फरमाया कि आदमी परिवार-समाज में रहता है, अकेला व्यक्ति अकेला होता है. संघ भी एक परिवार है. प्रश्न यह उठता है की मेरा त्राण एवं शरण कौन है ? परिवार को त्राण माना जाए या नहीं ? आचार्य ने समझाया कि- परिवार त्राण हो सकता है, लेकिन अत्राण भी हो सकता है. स्व-जन भी प्रीत की बात भले कर ले लेकिन वह आपको बचाने में सदैव समर्थ हो यह निश्चित नहीं कहा जा सकता. इसलिए व्यक्ति को जिन-धर्म की शरण में जाना चाहिए जो कि मोक्ष की प्राप्ति कराने वाली है. क्यूंकि चाहे चक्रवर्ती हो या तीर्थंकर, एक बार तो मौत होगी. मोक्ष के बिना अजरता-अमरता नहीं प्राप्त होती.एवं धर्म हमें मोक्ष दिलाता है. इस मायने में धर्म ही सच्चा त्राण है.