इचलकरंजी. २३.०८.१२.
समणी जिनप्रज्ञाजी एवं समणी सम्यक्त्वप्रज्ञाजी के पावन सान्निध्य में पर्युषण महापर्व की आराधना अनेको आध्यात्मिक गतिविधियों द्वारा की गयी. पर्युषण काल तक स्थानीय तेरापंथ भवन में अखंड नवकार मन्त्र जाप, प्रात:कालीन प्रार्थना, ध्यान एवं योग, आर्ष वाणी के उपदेश, केशी और गौतम संवाद प्रवचन, महावीर जीवनी प्रवचन, गुरु-वंदना, प्रतिक्रमण, अर्हत वंदना, दर्शनाचार कार्यशाला, श्रावक बारह व्रत कार्यशाला, युवकों, युवतियों, कन्याओं, किशोरों के लिए विशेष कार्यशालाए, ज्ञानशाला द्वारा विभिन्न प्रस्तुतियो, बच्चों के लिए संस्कार निर्माण शिविर आदि अनेकों आध्यात्मिक अनुष्ठानों में श्रावक-श्राविका समाज ने धर्मलाभ लिया. समणीजी की पावन प्रेरणा से तपस्याओं के क्रम में विशेष रूप से १ पचरंगी तपस्या, १७ अठ्ठाई एवं १ मासखमण तप कर तपस्वीयो ने कर्म निर्जरा की है. इसके साथ साथ सामयिक की पचरंगिया, मौन के नव-रंगिया, एकासन मासखमण, मौन की अठ्ठाई आदि आध्यात्मिक कार्य भी हुए. पर्युषण के ८ दिन क्रमश: खाद्य संयम दिवस, स्वाध्याय दिवस, सामयिक दिवस, वाणी
संयम दिवस , अणुव्रत चेतना दिवस, जप दिवस, ध्यान दिवस, संवत्सरी महापर्व एवं क्षमापना दिवस के रूप में मनाए गए.
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