महातपस्वी शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की विदुषी सुशिष्या साध्वी श्री मधुस्मिताजी के पावन सान्निध्य में आचार्य भिक्षु जन्मदिवस, चातुर्मासिक चतुर्दशी एवं तेरापंथ स्थापना दिवस का त्रिदिवसीय कार्यक्रम बहुत ही सरस, सुन्दर व रोचक रूप से मनाया गया.
जन्म एक विशिष्ट आत्मा का
आचार्य भिक्षु का जीवन उदितोउदित था. सिंह स्वप्न से मां के गर्भा में आएं और अंतिम क्षण तक सिंह की तरह गर्जना करते रहे. आचार्य भिक्षु सत्य के महान खोजी थे. सत्य की खोज के लिए आगमों का तलस्पर्शी अध्ययन किया. वे शास्त्रों में निहित सच्चाई को जीवन में देखना चाहते थे. मुसीबतों को आमंत्रित कने का उनका लक्ष्य नहीं था किन्तु सत्य की खोज करते समय आने वाली मुसीबतों को गले लगाने में भी उन्हें संकोच नहीं था. उक्त विचार साध्वीश्री मधुस्मिताजी ने आचार्य भिक्षु जन्मोत्सव व बोधि दिवस के अवसर पर व्यक्त किए. साध्वीश्री ने कहा- महान वो नहीं होते जिनके पास असीम धन, वैभव, नाम और यश है. महान वे है जिन्होंने सत्य को पा लिया है.
इस अवसर पर स्थानीय महिला मंडल ने मंगलाचरण किया. साध्वीश्री सहजयशाजी ने विचारों की प्रस्तुत दी. तेमम मंत्री जयश्री जैन, सीमा डागा, दिनेश छाजेड, इन्द्रादेवी डागा आदि ने गीतिका, कविता एवं वक्तव्य के माध्यम से महामना भिक्षु को श्रद्धा अर्पित की. कार्यक्रम का संचालन तेमम अध्यक्षा सुनीता गिडिया ने किया.
तेयुप द्वारा रात्रिकालीन धम्म जागरणा का विधिवत आयोजन किया गया.
त्याग का उपहार, आत्मा का श्रृंगार
चातुर्मासिक चतुर्दशी को त्याग, तप, जप, स्वाध्याय आदि की विशेष प्रेरणा देते हुए साध्वीश्री मधुस्मिताजी ने कहा- पुरुष से पुरुषोत्तम, लघु से महान और आत्मा से परमात्मा बनने का अवसर है मनुष्य जन्म. जो व्यक्ति मनुष्य जीवन की कीमत आंकता है, उसे त्याग, तप का श्रृंगार कर आत्मा को सजाना, संवारना चाहिए. उसके लिए जरुरी है- संकल्प बल. संकल्प शक्ति के सहारे व्यक्ति जीवन निर्माण की दिशाओं का उदघाट्न करता है और आने वाली हर परिस्थिति से लोहा लेकर विजय की ओर अग्रसर होता है. हर व्यक्ति को अपने जीने के ढंग का एक बार निरीक्षण, परीक्षण करना चाहिए. जीवन शैली को रूपांतरित करना चाहिए.
अध्यात्म पथ के पथिक बनकर आगे बढना चाहिए. उठो, जागो और समय की रफ़्तार को पहचानो. सामायिक, संवर, पौषध, रात्री भोजन परिहार, सचित परीहा, जमीकंद आदि अनेक प्रकार के त्याग करवाएं. अनेक भाई बहिनों ने त्याग की भेंट साध्वीश्री के श्रीचरणों में समर्पित की.
साध्वी वृन्द द्वारा ' चतुर्दशी पावस की आई, जगना और जगाना है..' गीत का सामूहिक संगान किया गया. साध्वीश्री सहजयशाजी ने चतुर्दशी का महत्त्व बताया.
निर्माण नए राजमार्ग का
जैन जगत के उज्जवल नक्षत्र आचार्य श्री भिक्षु की उज्ज्वल साधना हिमालय की उंचाई छूने वाली थी. आचार्य भिक्षु अध्यात्म साधना सम्पन्न थे. आचार्य भिक्षु सामूहिकता के कट्टर समर्थक थे किन्तु व्यक्ति के व्यक्तित्व को कभी कुचला नहीं. प्रत्येक मर्यादा निर्माण के समय धर्मसंघ के हर छोटे बड़े सदस्य की स्वीकृति ली. उक्त उदगार साध्वीश्री मधुस्मिताजी ने २५६ वें तेरापंथ स्थापना दिवस पर इचलकरंजी तेरापंथ भवन में रखे.
आपने आगे कहा कि- तेरापंथ धर्मसंघ अहंकार, ममकार विसर्जन तथा व्यक्ति स्वातंत्र्य की अनुपम प्रयोशाला है. शिष्य परम्परा एवं व्यक्तिगत गुरु परम्परा साधू समुदाय में अहंकार एवं ममकार को सिंचन देती है. आचार्य भिक्षु ऐसे अनुभवी चिकित्सक थे कि उन्होंने दोनों परम्पराओं कुठाराघात किया. तेरापंथ धर्मसंघ में दोनों परम्पराएं जडमूल से उखड गयी. न कोई किसी का गुरु, न कोई किसी का शिष्य. चतुर्विध धर्मसंघ एव ही आचार्य का शिष्य और उन्हीं के निर्देशानुसार सम्पूर्ण जीवन का संचालन होता है. हम परम सौभाग्यशाली है कि वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि एवं अनुशासना हमें प्राप्त है.
महिला मंडल के सामूहिक स्वर से कार्यक्रम का मंगलाचरण हुआ. अभातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज़ के सह्सम्पाडदक एवं तेयुप अध्यक्ष संजय वैदमुथा एवं सभा के पूर्व अध्यक्ष जवाहरलाल भंसाली ने अपने विचार रखे. साध्वीश्री भावयशाजी ने गुरुपूर्णिमा का महत्त्व बताया. संचालन साध्वी श्री सहजयशाजी ने किया.
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