सिरियारी एक खोज चमत्कार के रूप में
मन्नालालजी बरडिया, संपतजी गदिया, रामचन्द्रजी सोनी, तीनो ही सवत : 2016 में लाडनू से गुरुदेव तुलसी की आज्ञा से भिक्षु समाधि खोज के लिए सिरियारी की और प्रस्थान किया ! ये तीनो लोग सिरियारी पहुचकर गाव के बाहर गए वहा एक नदी के किनारे एक पहाड़ की तराई में गए जँहा स्वामीजी का अंतिम संस्कार किया गया था ! वहा उस समय एक छतरी व् एक पक्का चबूतरा बना हुआ था ! वहा के लोगो से पूछने पर पता चला की यह छतरी तो पीपाड़ रावजी की है ! एवं चबूतरा रुपचन्दजी गुरांसा का है ! तब इन तीनो के मन में जिज्ञासी होने लगी की चबूतरा रूपचंदजी गुरांसा का है तो उस पर उनका नाम अवश्य होना चाहिए ! इसी बिच उन्होंने गाववालो से और अनेक जानकारिया हासिल करने का प्रयास किया ! चबूतरे पर जो पत्थर लगा हुआ था उसको पानी से साफ़ करके देखा लेकिन उस पर कोई नाम नही अंकित था ! तब इन के मन में विशवास होने लगा की यह चबूतरा स्वामीजी का ही है गुरांसा का नही ! फिर वहा वर्तमान में मौजूद सेसमलजी गुरांसा को बुलाया गया ! एवं उनसे जानकारी की ! तब सेसमलजी गुरांसा ने कहा ये चबूतरा तो रूपचंदजी गुरांसा का ही है जो हमारे पाचवी पीढ़ी का है ! इस चबूतरे की हम पूजा भी करते है !
आखिर मन्नालालजी बरडिया, संपतजी गदिया, रामचन्द्रजी सोनी तीनो ने सेसमलजी गुरांसा से अनुग्रह किया की चबूतरे के आसपास की जमीन उन्हें (हमारे श्रावक) बेचान कर दे ! गुरांसा बेचान के लिए सहमत हो गये ! बाद में सभी लोगो ने निर्णय किया की यही स्वामीजी का चबूतरा है तथा गुरोंसाजी से यह भूमि चबूतरे सहित खरीद ली जाए ! एवं जमीन बेचान करार करके एक पब्लिक मीटिग में गुरांशा से कहला दिया जाए की यह चबूतरा स्वामीजी का ही है ! यह बात मन में तय कर जबरमलजी भंडारी ( उस समय ये राणावास विधा भूमि के अध्यक्ष थे ) मन्नालालजी बरडिया, संपतजी गदिया, तीनो बगडी के लिए रवाना हुए ! तथा बस्तीमलजी छाजेड को सिरियारी में ही छोड़ आए की दुसरे दिन वे गुरांशाजी को लेकर सोजतसिटी रामचन्द्रजी सोनी के घर आ जाए ! जहा बेचान सम्बन्धी कागजात कारवाही कर लेंगे ! सुबह जबरमलजी भंडारी जल्दी जाग गये थे- और चबूतरे की ही बाते करना शुरू कर दी ! भंडारी जी ने कहा - संपतजी गदियाको जगा दो ! देरी हो जाएगी ! मन्नालालजी बरडिया ने संपतजी गदिया को दो-तीन आवाजे दी पर वे नही जागे ! तब बरडियाजी ने संपतजी को हाथ पकड़ के जगाया और तैयार होकर तीनो ही सोजत के लिए रवाना हो गये ! सभी सोजत सिटी रामचन्द्रजी सोनी के घर गुरांशा एवं बस्तीमल जी का सिरियारी से आने का इंतज़ार कर रहे थे किन्तु वे नही आए !संपतजी ने कहा मै जीप लेकर सिरियारी जाता हूँ और उन्हें लेकर आता हूँ ! आखिर फैसला हुआ की ये तीनो ही सिरियारी जाएंगे !
जीप से रवाना हुए बीच में निमली गाव आता वहा "राईका" नामक वट-वृक्ष है यहा तीनो ने गाडी रोकी (यहा से सिरियारी 15-20 मिनिट का ही रास्ता है ) और वट-वृक्ष की छाव में कुछ देर के लिए तीनो आराम करने बैठे ! मन्नालालजी बरडिया ने कहा - "आप लोग यहा बैठकर आराम कीजिए मै बस्तीमलजी और गुरांशाजी को लेकर आता हूँ! जैसे ही बरडियाजी उठे - संपतजी गदिया ने बरडियाजी के कंधे पर हाथ रखे और कहा- " काका ( मन्नालालजी बरडिया ) "यह चबूतरा तो अपना नही है ! स्वामीजी का नही है !" चीज तय हो चुकी है बेचान होने जा रहा है यह तुम क्या कह रहे हो ? तुम्हे कोई दर्शाव (सपना ) हुआ है क्या ?- मन्नालालजी ने कहा ! तब सम्पतजी ने अपना मौन तौड़ते हुए कहा -" की आज सबरे जब आप और भंडारीजी बगडी में आपस में बाते कर रहे थे उस वक्त मै अर्ध-निंद्रा में था आपकी चबूतरे सम्बन्धी बाते मुझे सुनाई दे रही थी उसी वक्त मेरे सीधे हाथ के कंधे के पास एक प्रकाश निकला एवं दिव्य ज्योति हुई एक आवाज आई -
"नकली मै कंयु फसो हो !
असली की खोज करो !!
अठै ही मिल ज्यासी ! या आज ही मिल ज्यासी !" -- ये दोनों शब्दों में एक ही पूरा सुन पाया की आपने मेरा हाथ पकड़ कर जगा दिया !"
तब मन्नालालजी ने कहा- हमे कोई हालत में इस चबूतरे को नही लेना है हमे असली चबूतरे को खोजना है ! तीनो वहा से पुन: सिरियारी की और प्रस्थान किया ! सामने ही सिरियारी नदी में ही वस्तीमलजी, घिसुलालजी जीवराजजी (स्थानीय निवासी ) तीनो ही मिल गये ! बस्तीमलजी ने कहा- मन्नालालजी-सा हमारे काका श्री घिसुलालजी का कहना है की वो चबूतरा तो गुरांशा का ही है ! बाल्य अवस्था में घिसुलालजी ने इस चबूतरे के पास एक चूने का चबूतरा भी देखा था - बाल्य अवस्था में घिसुलालजी नदी में स्नान करने जाते थे तब उस चूने वाले चबूतरे पर कपड़ा आदि समान रखते थे एवं कभी कभार काकासा पतंग भी उड़ाते थे वहा ! घिरे-घिरे बरसात में चबूतरा ढह गया ! आखिर सभी मिलकर निर्णय किया की जगह पर जाकर ही असली चबूतरे की खोजबिन की जाए ! 10-15 दिन की अथक मेहनत के बाद एक दिन पक्के चबूतरे के पास "चुना-कली" बिखरा हुआ दिखाई दिया ...तब संपतजी ने कहा-यह प्रत्यक्ष प्रमाण है ! " यही स्वामीजी का चमत्कार है ! उस वक्त उनके पास जगह खोदने के लिए कोई समान नही था तब जिप में से स्टेरिंग मंगाकर जगह को थोड़ा खोदा गया, देखा तो अंदर से नीव का एक किनारा निकला ! उस वक्त 8-10 व्यक्ति मौजूद थे. वहा सभी ने कहा यही स्वामीजी का चबूतरा है ! 9-10 फिट खोदने के बाद एक 9x9 फिट की नीव निकली जो पूरी तरह से जीर्णअवस्था में थी ! मंत्री मुनि मग्नलालजी को यह बात पता चली तो उन्होंने भी इस चबूतरे की पुष्टि की ! अष्टमआचार्य कालुगुनी के प्रथम मेवाड़ की तरफ पधारना हुआ था तब (मंत्रीमुनि) के यह चबूतरा देखा हुआ था ! यह स्मारक स्वामीजी का ही है बात पक्की हुई !
2100 दरगज जमीन का पटा महासभा के नाम से 101 रूपये में बनवाकर सबसे स्वीकृति लेकर सरपंच श्री गुलाबसिहजी (सिरियारी ) के हाथो से जीर्णोद्वार का कार्य शुरू करवाया ! स्मारक के जीर्णोद्वार के लीए उस वक्त 500 रूपये के 13 सदस्य बनाए गये ! गुरुदेव ने मुनि बुद्धमलजी को स्मारक के लिए शिलालेख तैयार करने को कहा ! जीर्णोद्वार एवं फोटू शिला लेखा पर 6500 रुपयों का खर्च आया ! इस तरह हुई सिरियारी एक खोज चमत्कार के रूप में ! आज आप जिस सिरियारी को देख रहे है वह अनूठी है - यहा भादवा सुदी तेरस को भिक्षु स्वामी का चरमोउत्सव के रूप में घमंजागरण होता है जहा दुनिया भर से सैकड़ो लोग आते है !
सिरियारी भिक्षु समाधि स्थल का का पूर्ण रूप से अब विकास एवं नवीनीकरण हुआ है किन्तु में स्वामीजी का समाधि स्थल का चबूतरा जो सवत : २०१७ में बना था उसे ज्यो को त्यों ही सुरक्षित रखा गया है ! यह संगमरमर के पत्थर से उस वक्त बनाया गया था और सम्पूर्ण शिला लेखा मुनि श्री बुद्ध मल जी द्वारा तैयार किया गया ! इस शिला लेखा में एक और भिक्षु स्वामी की जन्म कुंडली व् मुद्रा का उल्लेख है तो एक और आचार्य भिक्षु के विहार क्षेत्र का उल्लेख है , उनके चातुर्मास व् उनका संघ को दिया अंतिम प्रवचन अंकित है . जब यह चबूतरा बनाया गया था उस वक्त यहा चारो और घास थी और कोई भी निर्माणकार्य नही हुआ था ! एवं समाधि की जगह पर चारो और कच्चा परकोटा बनाकर एक लोहे का बड़ा दरवाजा लगा दिया गया ! आचार्य भिक्षु के निर्वाण दिवस के उपलक्ष में सिरियारी स्थित आचार्य भिक्षु समाधि स्थल परिसर में प्रति वर्ष विशाल धम्म जागरण कार्यक्रम होता है ! यहा समाधि पर रोजना सभी धर्मो के हजारो लोग दर्शन के लिए आते है ! दर्शनार्थियों के ठहरने की एवं भोजन की उतम व्यवस्था है . वर्तमान में या के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र जी चोर्डिया , मंत्री किरन जी गादिया है ! या मुनि श्री सागरमल जी श्रमण हेम अतिथि गृह में प्रवास कर रहे है !
लेख प्र्स्तुता - महावीर जैन
मन्नालालजी बरडिया, संपतजी गदिया, रामचन्द्रजी सोनी, तीनो ही सवत : 2016 में लाडनू से गुरुदेव तुलसी की आज्ञा से भिक्षु समाधि खोज के लिए सिरियारी की और प्रस्थान किया ! ये तीनो लोग सिरियारी पहुचकर गाव के बाहर गए वहा एक नदी के किनारे एक पहाड़ की तराई में गए जँहा स्वामीजी का अंतिम संस्कार किया गया था ! वहा उस समय एक छतरी व् एक पक्का चबूतरा बना हुआ था ! वहा के लोगो से पूछने पर पता चला की यह छतरी तो पीपाड़ रावजी की है ! एवं चबूतरा रुपचन्दजी गुरांसा का है ! तब इन तीनो के मन में जिज्ञासी होने लगी की चबूतरा रूपचंदजी गुरांसा का है तो उस पर उनका नाम अवश्य होना चाहिए ! इसी बिच उन्होंने गाववालो से और अनेक जानकारिया हासिल करने का प्रयास किया ! चबूतरे पर जो पत्थर लगा हुआ था उसको पानी से साफ़ करके देखा लेकिन उस पर कोई नाम नही अंकित था ! तब इन के मन में विशवास होने लगा की यह चबूतरा स्वामीजी का ही है गुरांसा का नही ! फिर वहा वर्तमान में मौजूद सेसमलजी गुरांसा को बुलाया गया ! एवं उनसे जानकारी की ! तब सेसमलजी गुरांसा ने कहा ये चबूतरा तो रूपचंदजी गुरांसा का ही है जो हमारे पाचवी पीढ़ी का है ! इस चबूतरे की हम पूजा भी करते है !
आखिर मन्नालालजी बरडिया, संपतजी गदिया, रामचन्द्रजी सोनी तीनो ने सेसमलजी गुरांसा से अनुग्रह किया की चबूतरे के आसपास की जमीन उन्हें (हमारे श्रावक) बेचान कर दे ! गुरांसा बेचान के लिए सहमत हो गये ! बाद में सभी लोगो ने निर्णय किया की यही स्वामीजी का चबूतरा है तथा गुरोंसाजी से यह भूमि चबूतरे सहित खरीद ली जाए ! एवं जमीन बेचान करार करके एक पब्लिक मीटिग में गुरांशा से कहला दिया जाए की यह चबूतरा स्वामीजी का ही है ! यह बात मन में तय कर जबरमलजी भंडारी ( उस समय ये राणावास विधा भूमि के अध्यक्ष थे ) मन्नालालजी बरडिया, संपतजी गदिया, तीनो बगडी के लिए रवाना हुए ! तथा बस्तीमलजी छाजेड को सिरियारी में ही छोड़ आए की दुसरे दिन वे गुरांशाजी को लेकर सोजतसिटी रामचन्द्रजी सोनी के घर आ जाए ! जहा बेचान सम्बन्धी कागजात कारवाही कर लेंगे ! सुबह जबरमलजी भंडारी जल्दी जाग गये थे- और चबूतरे की ही बाते करना शुरू कर दी ! भंडारी जी ने कहा - संपतजी गदियाको जगा दो ! देरी हो जाएगी ! मन्नालालजी बरडिया ने संपतजी गदिया को दो-तीन आवाजे दी पर वे नही जागे ! तब बरडियाजी ने संपतजी को हाथ पकड़ के जगाया और तैयार होकर तीनो ही सोजत के लिए रवाना हो गये ! सभी सोजत सिटी रामचन्द्रजी सोनी के घर गुरांशा एवं बस्तीमल जी का सिरियारी से आने का इंतज़ार कर रहे थे किन्तु वे नही आए !संपतजी ने कहा मै जीप लेकर सिरियारी जाता हूँ और उन्हें लेकर आता हूँ ! आखिर फैसला हुआ की ये तीनो ही सिरियारी जाएंगे !
जीप से रवाना हुए बीच में निमली गाव आता वहा "राईका" नामक वट-वृक्ष है यहा तीनो ने गाडी रोकी (यहा से सिरियारी 15-20 मिनिट का ही रास्ता है ) और वट-वृक्ष की छाव में कुछ देर के लिए तीनो आराम करने बैठे ! मन्नालालजी बरडिया ने कहा - "आप लोग यहा बैठकर आराम कीजिए मै बस्तीमलजी और गुरांशाजी को लेकर आता हूँ! जैसे ही बरडियाजी उठे - संपतजी गदिया ने बरडियाजी के कंधे पर हाथ रखे और कहा- " काका ( मन्नालालजी बरडिया ) "यह चबूतरा तो अपना नही है ! स्वामीजी का नही है !" चीज तय हो चुकी है बेचान होने जा रहा है यह तुम क्या कह रहे हो ? तुम्हे कोई दर्शाव (सपना ) हुआ है क्या ?- मन्नालालजी ने कहा ! तब सम्पतजी ने अपना मौन तौड़ते हुए कहा -" की आज सबरे जब आप और भंडारीजी बगडी में आपस में बाते कर रहे थे उस वक्त मै अर्ध-निंद्रा में था आपकी चबूतरे सम्बन्धी बाते मुझे सुनाई दे रही थी उसी वक्त मेरे सीधे हाथ के कंधे के पास एक प्रकाश निकला एवं दिव्य ज्योति हुई एक आवाज आई -
"नकली मै कंयु फसो हो !
असली की खोज करो !!
अठै ही मिल ज्यासी ! या आज ही मिल ज्यासी !" -- ये दोनों शब्दों में एक ही पूरा सुन पाया की आपने मेरा हाथ पकड़ कर जगा दिया !"
तब मन्नालालजी ने कहा- हमे कोई हालत में इस चबूतरे को नही लेना है हमे असली चबूतरे को खोजना है ! तीनो वहा से पुन: सिरियारी की और प्रस्थान किया ! सामने ही सिरियारी नदी में ही वस्तीमलजी, घिसुलालजी जीवराजजी (स्थानीय निवासी ) तीनो ही मिल गये ! बस्तीमलजी ने कहा- मन्नालालजी-सा हमारे काका श्री घिसुलालजी का कहना है की वो चबूतरा तो गुरांशा का ही है ! बाल्य अवस्था में घिसुलालजी ने इस चबूतरे के पास एक चूने का चबूतरा भी देखा था - बाल्य अवस्था में घिसुलालजी नदी में स्नान करने जाते थे तब उस चूने वाले चबूतरे पर कपड़ा आदि समान रखते थे एवं कभी कभार काकासा पतंग भी उड़ाते थे वहा ! घिरे-घिरे बरसात में चबूतरा ढह गया ! आखिर सभी मिलकर निर्णय किया की जगह पर जाकर ही असली चबूतरे की खोजबिन की जाए ! 10-15 दिन की अथक मेहनत के बाद एक दिन पक्के चबूतरे के पास "चुना-कली" बिखरा हुआ दिखाई दिया ...तब संपतजी ने कहा-यह प्रत्यक्ष प्रमाण है ! " यही स्वामीजी का चमत्कार है ! उस वक्त उनके पास जगह खोदने के लिए कोई समान नही था तब जिप में से स्टेरिंग मंगाकर जगह को थोड़ा खोदा गया, देखा तो अंदर से नीव का एक किनारा निकला ! उस वक्त 8-10 व्यक्ति मौजूद थे. वहा सभी ने कहा यही स्वामीजी का चबूतरा है ! 9-10 फिट खोदने के बाद एक 9x9 फिट की नीव निकली जो पूरी तरह से जीर्णअवस्था में थी ! मंत्री मुनि मग्नलालजी को यह बात पता चली तो उन्होंने भी इस चबूतरे की पुष्टि की ! अष्टमआचार्य कालुगुनी के प्रथम मेवाड़ की तरफ पधारना हुआ था तब (मंत्रीमुनि) के यह चबूतरा देखा हुआ था ! यह स्मारक स्वामीजी का ही है बात पक्की हुई !
2100 दरगज जमीन का पटा महासभा के नाम से 101 रूपये में बनवाकर सबसे स्वीकृति लेकर सरपंच श्री गुलाबसिहजी (सिरियारी ) के हाथो से जीर्णोद्वार का कार्य शुरू करवाया ! स्मारक के जीर्णोद्वार के लीए उस वक्त 500 रूपये के 13 सदस्य बनाए गये ! गुरुदेव ने मुनि बुद्धमलजी को स्मारक के लिए शिलालेख तैयार करने को कहा ! जीर्णोद्वार एवं फोटू शिला लेखा पर 6500 रुपयों का खर्च आया ! इस तरह हुई सिरियारी एक खोज चमत्कार के रूप में ! आज आप जिस सिरियारी को देख रहे है वह अनूठी है - यहा भादवा सुदी तेरस को भिक्षु स्वामी का चरमोउत्सव के रूप में घमंजागरण होता है जहा दुनिया भर से सैकड़ो लोग आते है !
सिरियारी भिक्षु समाधि स्थल का का पूर्ण रूप से अब विकास एवं नवीनीकरण हुआ है किन्तु में स्वामीजी का समाधि स्थल का चबूतरा जो सवत : २०१७ में बना था उसे ज्यो को त्यों ही सुरक्षित रखा गया है ! यह संगमरमर के पत्थर से उस वक्त बनाया गया था और सम्पूर्ण शिला लेखा मुनि श्री बुद्ध मल जी द्वारा तैयार किया गया ! इस शिला लेखा में एक और भिक्षु स्वामी की जन्म कुंडली व् मुद्रा का उल्लेख है तो एक और आचार्य भिक्षु के विहार क्षेत्र का उल्लेख है , उनके चातुर्मास व् उनका संघ को दिया अंतिम प्रवचन अंकित है . जब यह चबूतरा बनाया गया था उस वक्त यहा चारो और घास थी और कोई भी निर्माणकार्य नही हुआ था ! एवं समाधि की जगह पर चारो और कच्चा परकोटा बनाकर एक लोहे का बड़ा दरवाजा लगा दिया गया ! आचार्य भिक्षु के निर्वाण दिवस के उपलक्ष में सिरियारी स्थित आचार्य भिक्षु समाधि स्थल परिसर में प्रति वर्ष विशाल धम्म जागरण कार्यक्रम होता है ! यहा समाधि पर रोजना सभी धर्मो के हजारो लोग दर्शन के लिए आते है ! दर्शनार्थियों के ठहरने की एवं भोजन की उतम व्यवस्था है . वर्तमान में या के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र जी चोर्डिया , मंत्री किरन जी गादिया है ! या मुनि श्री सागरमल जी श्रमण हेम अतिथि गृह में प्रवास कर रहे है !
लेख प्र्स्तुता - महावीर जैन
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