महावीर की अहिंसा ही है नए जीवन का आधार
15 Apr 2011, 0400 hrs IST,नवभारत टाइम्स आचार्य महाश्रमण
महावीर अब हमारे बीच नहीं हैं, पर महावीर की वाणी हमारे पास सुरक्षित है। आज कठिनाई यह हो रही है कि महावीर का भक्त उनकी पूजा करना चाहता है, पर उनके ...विचारों का अनुगमन करना नहीं चाहता। उन विचारों के अनुसार तपना और खपना नहीं चाहता। महावीर के विचारों का यदि अनुगमन किया जाता तो देश और राष्ट्र की स्थिति ऐसी नहीं होती।
भगवान महावीर का दर्शन अहिंसा और समता का ही दर्शन नहीं है, वह क्रांति का भी दर्शन है। उन्होंने अपने समग्र परिवेश को सक्रिय किया। उन्होंने जन-जन को तीर्थंकर बनने का रहस्य समझाया। एक धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करके ही वे कृतकाम नहीं हुए, उन्होंने तत्कालीन मूल्य-मानकों को भी चुनौती दी।
'सूयगडो' सूत्र में एक जगह आया है कि श्रमण भगवान महावीर लोक (दुनिया) में उत्तम हैं। लोकोत्तम कौन हो सकता है? लोकोत्तम वही व्यक्ति हो सकता है, जो अहिंसा का पुजारी हो। श्रमण महावीर परम अहिंसक थे, इसीलिए सूत्रकार ने उन्हें लोकोत्तम कहा।
अब तक चौबीस तीर्थंकर हुए हैं। माना जाता है कि उन तीर्थंकरों के शरीर के दक्षिणांग में एक चिन्ह था, जिसे ध्वज भी कहा जाता है। महावीर का ध्वज चिन्ह सिंह है। सुन कर लगता है कि यह कैसी विसंगति है। एक तरफ अहिंसा अवतार महावीर और दूसरी तरफ सिंह, जो हिंसा का प्रतीक है। क्या इसमें भी कोई राज है? हम दूसरे प्रकार से सोचें तो पता चलेगा कि यह बेमेल नहीं, बल्कि बहुत उचित मेल है। सिंह, पौरुष और शौर्य का प्रतीक है। भगवान महावीर की अहिंसा शूरवीरों की अहिंसा है, कायरों की नहीं। पलायनवादी और भीरु व्यक्ति कभी अहिंसक नहीं हो सकता। अहिंसा की आराधना के लिए आवश्यक है -अभय का अभ्यास। सिंह जंगल का राजा होता है, वन्य प्राणियों पर प्रशासन व नियंत्रण करता है। इसी तरह महावीर की अहिंसा है अपनी इंद्रियों और मन पर नियंत्रण करना।
भगवान महावीर अहिंसा की अत्यंत सूक्ष्मता में गए हैं। आज तो विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि वनस्पति सजीव है , पर महावीर ने आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व ही कह दिया था कि वनस्पति भी सचेतन है , वह भी मनुष्य की भांति सुख - दुख का अनुभव करती है। उसे भी पीड़ा होती है। महावीर ने कहा , पूर्ण अहिंसा व्रतधारी व्यक्ति अकारण सजीव वनस्पति का भी स्पर्श नहीं करता।
महावीर के अनुसार परम अहिंसक वह होता है , जो संसार के सब जीवों के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेता है , जो सब जीवों को अपने समान समझता है। ऐसा आचरण करने वाला ही महावीर की परिभाषा में अहिंसक है। उनकी अहिंसा की परिभाषा में सिर्फ जीव हत्या ही हिंसा नहीं है , किसी के प्रति बुरा सोचना भी हिंसा है।
परम अहिंसक वह होता है जो अपरिग्रही बन जाता है। हिंसा का मूल है परिग्रह। परिग्रह के लिए हिंसा होती है। आज पूरे विश्व में परिग्रह ही समस्या की जड़ है। एक महिला जिसके पैरों में सोने के कड़े हैं , उसके पैर काट लिये जाते हैं। एक औरत जिसके कानों में सोने के कुंडल हैं , उसके कान काट लिये जाते हैं। ऐसी घटनाएं क्यों घटती हैं ? परिग्रह के लिए। धन के लोभ में एक व्यक्ति किसी के कहने से किसी की हत्या कर डालता है।
भगवान महावीर ने दुनिया को अपरिग्रह का संदेश दिया , वे स्वयं अकिंचन बने। उन्होंने घर , परिवार राज्य , वैभव सब कुछ छोड़ा , यहां तक कि वे निर्वस्त्र बने। कुछ लोग उन अपरिग्रही महावीर को भी अपने जैसा परिग्रही बना देते हैं। कई जैन मंदिरों में महावीर की प्रतिमा बहुमूल्य आभूषणों से आभूषित मिलती है। यह महावीर का सही चित्रण नहीं है। हम स्वयं अपरिग्रही न बन सकें तो कम से कम महावीर को तो अपरिग्रही रहने दें , उन्हें परिग्रही न बनाएं।
प्रस्तुति : ललित गर्ग
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