खमनोर Jain Terapnth News on Saturday, 11 June 2011
शांति, अहिंसा के ध्वजवाहक आचार्य महाश्रमण ने ‘अपनी सेना’ के साथ शुक्रवार को उस धरा पर अपने कदम रखे, जहां करीब साढ़े चार सौ वर्ष पूर्व मातृभूमि की रक्षा और स्वाभिमान की खातिर राजपूती सेना ने मुगल सेना के साथ मुकाबला किया था। त्याग व शौर्य के दम पर देशहित में युद्ध लड़कर महाराणा प्रताप ने जिन मूल्यों की स्थापना की, उन्हें जानकर आचार्य अभिभूत हो गए। हल्दीघाटी में दिनभर प्रवास के बाद शाम साढ़े सात बजे आचार्य ने धवल सेना सहित खमनोर गांव में प्रवेश किया। आचार्य महाश्रमण शुक्रवार को सुबह वाटी गांव से विहार कर कालोड़ा होते हुए बलीचा स्थित प्रताप संग्रहालय पहुंचे, जहां संस्थापक मोहन श्रीमाली व अशोक सेठिया ने उनकी अगवानी की।
शांति, अहिंसा के ध्वजवाहक आचार्य महाश्रमण ने ‘अपनी सेना’ के साथ शुक्रवार को उस धरा पर अपने कदम रखे, जहां करीब साढ़े चार सौ वर्ष पूर्व मातृभूमि की रक्षा और स्वाभिमान की खातिर राजपूती सेना ने मुगल सेना के साथ मुकाबला किया था। त्याग व शौर्य के दम पर देशहित में युद्ध लड़कर महाराणा प्रताप ने जिन मूल्यों की स्थापना की, उन्हें जानकर आचार्य अभिभूत हो गए। हल्दीघाटी में दिनभर प्रवास के बाद शाम साढ़े सात बजे आचार्य ने धवल सेना सहित खमनोर गांव में प्रवेश किया। आचार्य महाश्रमण शुक्रवार को सुबह वाटी गांव से विहार कर कालोड़ा होते हुए बलीचा स्थित प्रताप संग्रहालय पहुंचे, जहां संस्थापक मोहन श्रीमाली व अशोक सेठिया ने उनकी अगवानी की।
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