दिनांक : 25.09 .11 . इचलकरंजी.
तेयुप इचलकरंजी द्वारा स्थानीय 'नाकोडा विद्या मंदिर' शाला के प्रांगण में समणी निर्देशिका चिन्मय प्रज्ञाजी आदि समणी वृन्द 3 के पावन सानिध्य में 'जीवन विज्ञान' का कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम में 350 विद्यार्थी संभागी बने.
जीवन विज्ञान पर मार्गदर्शन करते हुए समणी निर्देशिका चिन्मय प्रज्ञाजी ने अपने उदबोधन में फरमाया कि बचपन में ही यदि जीवन विज्ञान उपक्रम द्वारा बालको में संस्कार निर्माण किया जाए तो स्वस्थ समाज की संरचना की जा सकती है. उन्होंने जीवन विज्ञान का अर्थ समझाते हुए कहा कि - 'जी' अर्थात 'जीभ पर नियंत्रण' , 'व' अर्थात 'विनय' एवं 'न' अर्थात 'नम्रता' . विद्यार्थी जीवन में इन तीनो का होना बहुत जरूरी है.
शाला की छात्राओ द्वारा मंगलाचरण गीतिका प्रस्तुत की गयी. समणी स्वर्ण प्रज्ञा एवं समणी सुलभ प्रज्ञा ने जीवन विज्ञान गीतिका का संगान किया. समणी स्वर्ण प्रज्ञा ने दीर्घ श्वास, कायोत्सर्ग, महाप्राण धव्नि, सम्पादासन, कोणासन आदि के प्रयोग करवाए.
इस अवसर पर अणुव्रत कार्यकर्त्ता ए. एन. निम्बालकर, स्कूल की प्राचार्या एम्. जी. कांटे, एस.वी. सपाटे, नाकोडा एजुकेशन सोसायटी के संचालक नरपत सोलंकी, सचिव पुष्पराज संकलेचा आदि ने अपनी भावनाए व्यक्त की. तेरापंथ सभा के अध्यक्ष सोभागमल छाजेड, सचिव राजेश सुराणा, तेयूप पदाधिकारी एवं सदस्य, महिला मंडल पदाधिकारी एवं सदस्याए आदि उपस्थित थे.
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