नैतिकता का महत्व उपासना
से भी ज्यादा : आचार्य महाश्रमण
आचार्य महाश्रमण ने 'व्यापार और सदाचार' विषय पर व्यापार में नैतिकता
प्रामाणिकता रखने की प्रेरणा देते हुए कहा कि व्यापार एक सेवा का माध्यम
है। व्यापार के माध्यम से जनता के आवश्यकताओं की पूर्ति कर सेवा की जाती है
और इस कार्य में व्यापारी वर्ग का भी बड़ा सहयोग रहता है। उन्होंने कहा कि
बाजार में नैतिकता की देवी विराजमान रहे और व्यक्ति के व्यवहार में
धार्मिकता रहनी चाहिए। जिस प्रकार मंदिरों आदि धार्मिक स्थलों पर गंदगी
नहीं होने दी जाती, उसी प्रकार बाजार में भी अनैतिकता रूपी गंदगी को
प्रश्रय नहीं देना चाहिए। आचार्य रविवार को नया तेरापंथ भवन में आयोजित
धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।
आचार्य ने नैतिकता का महत्व उपासना से भी ज्यादा बताते हुए कहा कि नैतिकता की देवी बाजार में रहने पर ही जन सेवा कार्य व्यापारी द्वारा किया जा सकता है। उन्होंने प्रेरणा देते हुए कहा कि व्यापार में सदाचार रहना चाहिए। व्यापारी अर्थ का लोभ नहीं करके नैतिकता को व्यवहार स्थान दें। आचार्य ने शुद्ध पैसों का ही धार्मिक स्थानों में उपयोग करने की सलाह देते हुए कहा कि अर्थ प्राप्ति के साधन शुद्ध हो तो व्यापार में अणुव्रत की विद्यमानता रहती है।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने व्यापार में सीमा से ज्यादा लाभ कमाने की भावना को सामाजिक अपराध की श्रेणी में रखने वाला बताया। उन्होंने कहा कि कि सदाचार में रहने वाला व्यक्ति ही स्वयं का समाज व राष्ट्र का विकास करता हुआ एक अच्छा नागरिक बन सकता है। कार्यक्रम के प्रारंभ में अणुव्रत की जनमानस में अलख जगाने वाला गीत 'अणुव्रत है सोया संसार जगाने के लिए' मुनि राजकुमार ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में केवलचंद जैन ने विचार व्यक्त किए। गणेश डागलिया व सवाईमल पोकरणा की ओर से 'अणुव्रत आचार सहिंता' आचार्य को भेंट की गई। अणुव्रत जिला प्रभारी ओमप्रकाश बांठिया ने आभार ज्ञापन किया। संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।
प्रवास व्यवस्था समिति के संयोजक देवराम खींवसरा ने बताया कि आचार्य का शेष अष्ट दिवसीय प्रवास का भी संपूर्ण बालोतरा शहर पूरा-पूरा लाभ लेने के लिए हर समय सेवा में तैयार है। प्रवचन पंडाल में भी दो से तीन हजार की नियमित उपस्थिति रहती है।

आचार्य ने नैतिकता का महत्व उपासना से भी ज्यादा बताते हुए कहा कि नैतिकता की देवी बाजार में रहने पर ही जन सेवा कार्य व्यापारी द्वारा किया जा सकता है। उन्होंने प्रेरणा देते हुए कहा कि व्यापार में सदाचार रहना चाहिए। व्यापारी अर्थ का लोभ नहीं करके नैतिकता को व्यवहार स्थान दें। आचार्य ने शुद्ध पैसों का ही धार्मिक स्थानों में उपयोग करने की सलाह देते हुए कहा कि अर्थ प्राप्ति के साधन शुद्ध हो तो व्यापार में अणुव्रत की विद्यमानता रहती है।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने व्यापार में सीमा से ज्यादा लाभ कमाने की भावना को सामाजिक अपराध की श्रेणी में रखने वाला बताया। उन्होंने कहा कि कि सदाचार में रहने वाला व्यक्ति ही स्वयं का समाज व राष्ट्र का विकास करता हुआ एक अच्छा नागरिक बन सकता है। कार्यक्रम के प्रारंभ में अणुव्रत की जनमानस में अलख जगाने वाला गीत 'अणुव्रत है सोया संसार जगाने के लिए' मुनि राजकुमार ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में केवलचंद जैन ने विचार व्यक्त किए। गणेश डागलिया व सवाईमल पोकरणा की ओर से 'अणुव्रत आचार सहिंता' आचार्य को भेंट की गई। अणुव्रत जिला प्रभारी ओमप्रकाश बांठिया ने आभार ज्ञापन किया। संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।
प्रवास व्यवस्था समिति के संयोजक देवराम खींवसरा ने बताया कि आचार्य का शेष अष्ट दिवसीय प्रवास का भी संपूर्ण बालोतरा शहर पूरा-पूरा लाभ लेने के लिए हर समय सेवा में तैयार है। प्रवचन पंडाल में भी दो से तीन हजार की नियमित उपस्थिति रहती है।