अनित्यता की अनुप्रेक्षा से आत्म कल्याण : आचार्य महाश्रमण प्रवचन वीडियो ०२.०५.१२
बालोतरा ०२ मई २०१२
आचार्य महाश्रमण ने अपने प्रवचन में फरमाया कि हमारी दुनिया में अनित्यता भी विद्यमान है। पदार्थ किसी अपेक्षा से नित्य तो किसी और से अनित्य भी होता है। द्रव्य ने की दृष्टी से पदार्थ नित्य एवं पर्याय ने की दृष्टी से अनित्य होता है. शरीर भी एक पर्याय है। शरीर हमेशा नहीं रहता है, आत्मा शरीर को छोड़ देती है। नया तेरापंथ भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य ने कहा कि जिस प्रकार आदमी पुराने वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्र धारण करता है। वैसे ही आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को धारण कर लेती है। इसलिए यह शरीर अनित्य है तो जीवन भी अनित्य है। आचार्य ने शरीर को अध्रुव बताते हुए कहा कि व्यक्ति को धर्म का संचय आत्मा के कल्याण के लिए करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अनित्य साधना द्वारा ऐसी साधना हो कि स्थायी नित्य आत्मा का कल्याण हो जाए। आत्मा की शाश्वत है जो ज्ञान, दर्शन युक्त है। व्यक्ति आत्म कल्याण के लिए प्रयास करें। व्यक्ति का चैत्य पुरुष आत्मा जागृत हो जाए।
बालोतरा ०२ मई २०१२
आचार्य महाश्रमण ने अपने प्रवचन में फरमाया कि हमारी दुनिया में अनित्यता भी विद्यमान है। पदार्थ किसी अपेक्षा से नित्य तो किसी और से अनित्य भी होता है। द्रव्य ने की दृष्टी से पदार्थ नित्य एवं पर्याय ने की दृष्टी से अनित्य होता है. शरीर भी एक पर्याय है। शरीर हमेशा नहीं रहता है, आत्मा शरीर को छोड़ देती है। नया तेरापंथ भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य ने कहा कि जिस प्रकार आदमी पुराने वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्र धारण करता है। वैसे ही आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को धारण कर लेती है। इसलिए यह शरीर अनित्य है तो जीवन भी अनित्य है। आचार्य ने शरीर को अध्रुव बताते हुए कहा कि व्यक्ति को धर्म का संचय आत्मा के कल्याण के लिए करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अनित्य साधना द्वारा ऐसी साधना हो कि स्थायी नित्य आत्मा का कल्याण हो जाए। आत्मा की शाश्वत है जो ज्ञान, दर्शन युक्त है। व्यक्ति आत्म कल्याण के लिए प्रयास करें। व्यक्ति का चैत्य पुरुष आत्मा जागृत हो जाए।