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13 July 2012 Acharya Mahashraman Video Pravchan

अच्छे गुण लें, दुर्गुण छोडें : आचार्य जसोल १४जुलाइ २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो तेरापंथ शासन के 11वें आचार्य महाश्रमण ने कहा कि व्यक्ति गुणों के आधार पर साधु होता है और अवगुणों के आधार पर असाधु बन जाता है। उन्होंने कहा कि आदमी का लक्ष्य अच्छे गुणों को ग्रहण करने और दुर्गुणों को छोडऩे का होना चाहिए। व्यक्ति को लक्ष्य बनाकर सद्गुणों को चुन लेना चाहिए और उन्हें अपने भीतर स्थापित कर लेना चाहिए। एक-एक गुण को ग्रहण करके व्यक्ति अपने जीवन को घट को परिपूर्ण कर सकता है। आचार्य शुक्...रवार को जसोल में चातुर्मास प्रवचन के दौरान धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि साधु का लक्ष्य साधना व गुणों के विकास को होना चाहिए। दीक्षा पर्याय के बढऩे के साथ साधना भी परिपक्व तर होनी चाहिए। साधु कषायों को मंद कर, अशुभ योगों को बंद कर शुभ योग में रहने का प्रयास करें। सेवा है सिरमौर साधना आचार्य ने कहा कि संयम महाव्रत की साधना मूल बात है। उसके बाद साधु को स्वाध्याय, सेवा व ज्ञनाहार की तपस्या का भी प्रयास करना चाहिए। उससे ये तीनों न हो सके तो उपयुक्तता के आधार पर किसी एक का चयन तो करना ही चाहिए। आचार्य ने उपयुक्तता का मतलब बताते हुए कहा कि शिष्य गुरू इंगित का ध्यान रखें व गुरू आज्ञा- गुरू इंगित को उपयुक्त माने। आचार्य ने कहा कि सेवा की उपेक्षा होने पर स्वाध्याय व तपस्या को गौण कर देना चाहिए। पर सेवा से वंचित नहीं रहना चाहिए। सेवा निर्जरा की बड़ी साधना है। सेवा सबके लिए सिरमौर है। शासन श्री साध्वी सिद्धप्रज्ञा के देवलोकगमन होने पर उनकी स्मृति सभा में श्रद्धांजलि देते हुए आचार्य ने कहा कि वे ज्ञानाराधना में रत रहने वाली साध्वी थी। उनमें कषाय मंदता की भी अच्छी साधना थी। साध्वी सिद्धप्रज्ञा को तुलसी के मुख कमल से दीक्षित होने का अवसर मिला। वे शासन में आयी, शासन की सेवा ली, शासन को सेवा दी और एक दिन चली भी गई। साध्वी सिद्धप्रज्ञा को श्रद्धांजलि स्वरूप साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा, मंत्री मुनि सुमेरमल, मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुत विभा ने अपने भावोद्गारित किए। साध्वी की संसार पक्षीय बहन साध्वी यशोधरा, साथ रही साध्वियों में साध्वी श्रुत यशा, साध्वी मुदित यशा, साध्वी विमल प्रज्ञा ने अपने वक्तव्य द्वारा श्रद्धांजलि दी। साध्वी कमल व अन्य साध्वियों ने गीतिका के माध्यम से श्रद्धांजलि दी। साध्वी की संसार पक्षीय भान निर्मला बैद ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।

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महान है श्रमणत्व तुम्हारा : अमृत महोत्सव पर गुरुदेव महाश्रमण जी को समर्पित

महान है श्रमणत्व तुम्हारा  संजय  वैदमेहता महान है श्रमणत्व तुम्हारा , जय-जय महाश्रमण  पावन कर देते भूमि को, जय-जय  ज्योति चरण जिनवाणी को जन-जन पहुचाने तुम चलते अविराम हर  शबरी की कुटिया पावन, करते "तेरापथ के राम" पुरुषोत्तम तुम कर रहे, मर्यादा-मूल्यों का जागरण महान है श्रमणत्व तुम्हारा , जय-जय महाश्रमण    अहिंसा यात्रा-अणुव्रत से, युगधारा में भर रहे प्राण  दृष्टि तुम्हारी है राष्ट्र का,  हो सर्वांगीण निर्माण  नयी पीढ़ी  को मिलता रहे संस्कारों का सिंचन महान है श्रमणत्व तुम्हारा , जय-जय महाश्रमण  छाई है खुशिया संघ में,  मना रहे अमृत जन्मोत्सव   तेरी अमृत-वर्षा गण में , खिलाती रहे नव-पल्लव  युगों-युगों तक तारणहार, करो तुम संघ संचालन महान है श्रमणत्व तुम्हारा , जय-जय महाश्रमण  होगा बेडा पार मुझ, शरणागत को है विश्वास  तुम ही मेरे प्राण हो,  और तुम ही मेरे श्वास नाम तेरा ही रटता, 'संजय'  हर पल - हर क्षण  महान है श्रमणत्व तुम्हारा , जय-जय...

आचार्य श्री महाश्रमण

Acharya Mahashraman Life Story By Mahaveer Jain Name : Acharya Shri Mahashraman Original Name : Mohan Dugar Date of Birth : 13 May 1962 Place of Birth : Sardarsahar (Rajasthan) Initiation- Date : 5th May 1974 Place : Sardarsahar (Rajasthan) Name : Muni Mudit Initiated by : Muni Shri Sumermalji (Ladnun) Guru : Acharya Shri Tulsi, Acharya Shri Designated Acharya Date : 9 May 2010 Place : Sardarshahar Patotsav Date & Place : 23 May 2010, Sardarshahar जीवन परिचय ▄▀▄▀▄▀▄▀▄▀▄▀▄ राजस्थान के इतिहासिक नगर सरदारशहर में पिता झुमरमल एवं माँ नेमादेवी के घर 13 मई 1962 को जन्म लेने वाला बालक मोहन के मन में मात्र 12 वर्ष की उम्र में धार्मिक चेतना का प्रवाह फुट पड़ा एवं 5 मई 1974 को तत्कालीन आचार्य तुलसी के दिशा निर्दशानुसार मुनि श्री सुमेरमलजी "लाडनू " के हाथो बालक मोहन दीक्षित होकर जैन साधू बन गये ! धर्म परम्पराओ के अनुशार उन्हें नया नाम मिला "मुनि मुदित" ▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄▄ आज तेरापंथ धर्म संध को सूर्य से तेज लिए चाँद भरी धार्मिक,आध्यात्मिक ...