इचलकरंजी.०९.०८.१२.
परम आराध्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी ने महती कृपा कर समणी जिनप्रज्ञा एवं समणी सम्यक्त्वप्रज्ञा का प्रवास इचलकरंजी फ़रमाया था.समणी जी के इचलकरंजी आगमन पर रात्रिकालीन स्वागत कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमे महिला मंडल द्वारा स्वागत गीतिका, ज्ञानशाला बच्चो द्वारा संगीतमय प्रस्तुति, सभा सचिव पुष्पराज संकलेचा, कोषाध्यक्ष गौतम छाजेड, तेयुप सचिव संजय मेहता आदि द्वारा वक्तव्य इत्यादि से समणी वृन्द का स्वागत किया.
अपने उद्बोधन में समणी जिनप्रज्ञाजी ने फ़रमाया कि- "स्व+आगत: से स्वागत बनता है अर्थ स्व में आगत करना सच्चा स्वागत है. चातुर्मास एवं पर्युषण के इस विशेष समय में श्रावक समाज स्वयं की आत्मा में वापिस लौटे, स्वयं की सुधि ले. समणी सम्यक्त्वप्रज्ञाजी ने बड़े ही अनोखे अंदाज में आगामी दिनों में होने वाले कार्यक्रमों की जानकारी दी.
परम आराध्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी ने महती कृपा कर समणी जिनप्रज्ञा एवं समणी सम्यक्त्वप्रज्ञा का प्रवास इचलकरंजी फ़रमाया था.समणी जी के इचलकरंजी आगमन पर रात्रिकालीन स्वागत कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमे महिला मंडल द्वारा स्वागत गीतिका, ज्ञानशाला बच्चो द्वारा संगीतमय प्रस्तुति, सभा सचिव पुष्पराज संकलेचा, कोषाध्यक्ष गौतम छाजेड, तेयुप सचिव संजय मेहता आदि द्वारा वक्तव्य इत्यादि से समणी वृन्द का स्वागत किया.
अपने उद्बोधन में समणी जिनप्रज्ञाजी ने फ़रमाया कि- "स्व+आगत: से स्वागत बनता है अर्थ स्व में आगत करना सच्चा स्वागत है. चातुर्मास एवं पर्युषण के इस विशेष समय में श्रावक समाज स्वयं की आत्मा में वापिस लौटे, स्वयं की सुधि ले. समणी सम्यक्त्वप्रज्ञाजी ने बड़े ही अनोखे अंदाज में आगामी दिनों में होने वाले कार्यक्रमों की जानकारी दी.
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