महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर..
महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर
करता हूं मैं सादर वंदन ।
कितनी उज्ज्वल सुषमाओं
से था सुरभित तेरा नंदन वन
महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर..
थी कितनी अद्भुत क्षमताएं,
किसकी किसकी बात बताएं,
शीतलतम व्यवहार तुम्हारा
जैसे कोई शीतल चन्दन ।
महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर..
कितना मृदु व्यवहार तुम्हारा,
बहती जहां शांति की धारा,
कितना निर्मल कितना पावन
निष्चंचल था तेरा चिंतन ।
महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर...
स्वीकारो प्रभु ! मेरा वंदन,
दो वरदान सफल हो जीवन,
चरम लक्ष्य की ओर चल पड़े
मेरा क्षण क्षण हो सरसिज मन ।
महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर...
H.H. Acharya Mahapragya was 10th head of Jain Terapanth.
सांस सांस सुमिरन कर
सांस सांस सुमिरन कर,
जो मन अरिहंत हुआ है।
मानवता के माथे का
चंदन एक संत हुआ है।
दिव्य ज्योति का जहां हमेशा
ज्ञान यज्ञ होता है,
जो जीवन का अर्थ समझ ले
‘महाप्रज्ञ’ होता है।
शत-शत वंदन हे गुरुराज
हे ! प्रज्ञा के महासूर्य, कविराज,
महायोगी महाप्रज्ञ गणिराज ।
जिस सच्चाई को जिया आपने,
उसकी सख्त जरूरत आज ।।
अन्वेषण करने में जीवन सारा,
लगा दिया मानवता के काज।
देखी थी करुणा तेरी हो प्रभुवर!
शांत कषाय मानवीय गुणों का ताज ।।
अप्रतिहत तर्कशक्ति, मौलिक चिन्तन,
था प्रवचन का अलबेला अंदाज ।
अध्यात्म के शिखर पुरुष को वंदना,
शत-शत वंदन हे गुरुराज ।।
युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के
15वें महाप्रयाण दिवस पर शत्-शत् नमन
सादर विनयांजलि
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