महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर.. रचयिता - तनसुखलाल बैद महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर करता हूं मैं सादर वंदन । कितनी उज्ज्वल सुषमाओं से था सुरभित तेरा नंदन वन महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर.. थी कितनी अद्भुत क्षमताएं, किसकी किसकी बात बताएं, शीतलतम व्यवहार तुम्हारा जैसे कोई शीतल चन्दन । महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर.. कितना मृदु व्यवहार तुम्हारा, बहती जहां शांति की धारा, कितना निर्मल कितना पावन निष्चंचल था तेरा चिंतन । महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर... स्वीकारो प्रभु ! मेरा वंदन, दो वरदान सफल हो जीवन, चरम लक्ष्य की ओर चल पड़े मेरा क्षण क्षण हो सरसिज मन । महाप्रज्ञ के महाप्रयाण पर... H.H. Acharya Mahapragya was 10th head of Jain Terapanth. सांस सांस सुमिरन कर सांस सांस सुमिरन कर, जो मन अरिहंत हुआ है। मानवता के माथे का चंदन एक संत हुआ है। दिव्य ज्योति का जहां हमेशा ज्ञान यज्ञ होता है, जो जीवन का अर्थ समझ ले ‘महाप्रज्ञ’ होता है। शत-शत वंदन हे गुरुराज हे ! प्रज्ञा के महासूर्य, कविराज, महायोगी महाप्रज्ञ गणिराज । जिस सच्चाई को जिया आपने, उसकी सख्त जरूरत आज ।। अन्वेषण करने में जीवन सार
Jain Bhagwan Mahavir Janm Kalyanak Song हम महावीर बन जाएं ! (लय - जहां डाल डाल पर सोने की चिड़ियां) (रचना - तनसुखलाल बैद) हम महावीर बन जाएं ! हे देव तुम्हारे चरणों में श्रद्धा से शीश नवाएं, हम महावीर को ध्याएं, हम महावीर बन जाएं। जय वीर की, महावीर की २ हम सत्य अहिंसा के पथ पर, चलने का क्रम अपनाएं हम महावीर को ध्याएँ, हम महावीर बन जाएं। जय वीर की महावीर की २ जिस अनेकांत की धारा ने धोया विवाद जीवन का २, जिस आत्मज्ञान से हुआ प्रकाशित प्रांगण मन चिंतन का २, जिसके प्रकाश से उठी जाग सहसा सोई प्रज्ञाएं, हम महावीर को धयाएं, हम महावीर बन जाएं। जय वीर की, महावीर की २ सोना जिसने तप गहरे तप में अपनी आब बढ़ाई २, गहरे जब उतरे सागर में तो दिए रत्न दिखलाई २, डूबे आत्मा के चिंतन में तो, मिली नई निष्ठाएं। हम महावीर को ध्याऎं, हम महावीर बन जाएं। जय वीर की, महावीर की २ ले स्वर श्रद्धा का बने विनत प्रभु भक्त तुम्हारे सारे २, दो कुछ ऐसा वरदान स्वयं आत्मा का स्रोत संवारें २, हो उद्घाटित जीवन यात्रा में, कुछ दुर्लभ घटनाएं, हम महावीर को ध्याएं, हम महावीर बन जाएं।